मेरी माँ…. बादलों के उस पार
आज माँ को गये डेढ़ साल हो गया, तब से लेकर अब तक हर पल हर लम्हा वो याद आयी है। उसकी उपस्थिति हर समय मेरे मन मस्तिष्क पर रहती है। लोग कहते है कि मरने वालों के साथ मरा नहीं जा सकता,उन्हे इस दुनिया से अकेले ही जाना होता है लेकिन मेरी माँ अकेली नहीं गयी…… मेरे मन का एक कोना उनके साथ ही चला गया। मेरे उस कोने के साथ मेरी हँसी , मेरी जिन्दादिली भी चली गयी थी।
लेकिन पिछले दो महीनों से मुझे लग रहा था कि मेरी माँ मेरे मन के उस कोने का बोझ सह नहीं पा रही है हमेशा हँसते रहने वाली मेरी माँ दुखी थी। मुझे याद है कि मैंने हमेशा ही माँ के जीवन में गर्व के पल जुटाये थे,मुझे देखकर वे अभिमानीत महसूस करती थी,लेकिन बादलों के उस पार वे दुखी है मेरी ही वजह से, मेरे मन का एक कोना उन्हे बेचैन किये हुए था, सो मैंने ठान लिया कि अब भी माँ को गर्वित करना मेरा दायित्व है।
अब ,मैंने माँ को अपने मन के कोने से मुक्त कर दिया है,मेरी जिन्दादिली पहले से और मुखर हो गयी है , मेरी हँसी अब दोगुनी हो गयी है क्योकि अब मेरे साथ माँ भी मुस्कुराती हैं।
माँ ,आप जहाँ भी हो आपकी आत्मा को शांती मिले और मेरे कर्म हमेशा आपको गौरवान्वित करे ।